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10 Aug 2022 · 1 min read

'नज़रिया'

ऩजर का नहीं… नज़रिए का सवाल है।
एक कहे पूज्य सरोवर दूजा कहे ताल है।

वो कहता औघड़ नशेड़ी जिसे,
मेरा वही त्रिलोकी ‘महाकाल’ है।

एक पहलू में व्यभिचारी रावण तो,
दूजे में पंडित योद्घा बेमिसाल है।

कहें चोर-छली नंद किशोर को कुछ,
कुछ कहें वही जगत दीन दयाल है।

सुन ध्यान, दोष नज़र का नहीं इसमें,
यह सिर्फ़ नजरिए का ही कमाल है।

स्वरचित-
-गोदाम्बरी नेगी
(हरिद्वार उत्तराखंड)

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