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8 Aug 2022 · 1 min read

अरसात सवैया गुरू महिमा

अरसात सवैया
7भगण 1 रगण
गुरू महिमा
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साँचहुँ चंचल है मन की गति,
एकहि ठौर न जो थिर हो रहे।

लालच लोभ सतावत काम,
समेटत पाप निरन्तर ही बहे।

आवत अंत बचे यमफंद,
व दारुण कष्ट न किंचित भी सहे।

पार लगे भव सागर से वह,
जो गुरु के पद पंकज जा गहे।

गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
30/7/22

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