Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
6 Aug 2022 · 1 min read

श्रावण गीत

डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* श्रावण गीत *
बरस जाने दो
जब भी दिल हो आवारा
मैं काहे को
देखूं राह किसी की
काहे रास्ता देखूं तिहारा
बरस जाने दो
जब भी दिल हो आवारा
दिल है मेरा चाहत मेरे राम की
भाव हैं सावन जैसे भावनायें प्यार की
दिल है मेरा चाहत मेरे राम की
भाव हैं सावन जैसे भावनायें प्यार की
मैं काहे को
देखूं राह किसी की
काहे रास्ता देखूं तिहारा
बरस जाने दो
जब भी दिल हो आवारा
मुश्किलों के दौर हों या
आपदा का मंजर हो ,
हम तो खेलें खुश होके
या हो के बन्जारा
मैं काहे को
देखूं राह किसी की
काहे रास्ता देखूं तिहारा
बरस जाने दो
जब भी दिल हो आवारा
ये नही शौके सितम
न ही है अपलम चपलम
ये नही शौके सितम
न ही है अपलम चपलम
दिल मचलता है जब भी होता है गम
दिल मचलता है जब भी होता है गम
मैं काहे को
देखूं राह किसी की
काहे रास्ता देखूं तिहारा
बरस जाने दो
जब भी दिल हो आवारा

Loading...