*किस्त की उधारी (गीतिका)*
किस्त की उधारी (गीतिका)
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(1)
सब पर मकान-गाड़ी की किस्त की उधारी
बच्चों की फीस लेकिन सबसे अधिक है भारी
(2)
हर क्षेत्र में ये लोहा मनवा रही हैं अपना
कैसी बराबरी अब नर से है आगे नारी
(3)
होती किताबों ही में है नारियों की पूजा
घर-घर दहेज -हिंसा का दौर अब भी जारी
(4)
हर ओर ऑनलाइन का दिख रहा जमाना
निभती इसी से यारी, सब भॉंति रिश्तेदारी
(5)
जो गलतियाँ तुम्हारी, मुँह पर तुम्हें बता दे
तुमको सुधार देगा, उसके रहो आभारी
(6)
घर बन रहे पड़ोसी का देखकर पड़ोसी
ऐसा बुझा हुआ ज्यों हारा हुआ जुआरी
(7)
जब भी बनाओ घर तो कुछ ऐब छोड़ देना
ठंडक पड़ेगी अपनों को देख ढेर सारी
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451