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31 Jul 2022 · 1 min read

✍️वो मेरी तलाश में…✍️

✍️वो मेरी तलाश में…✍️
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एक दबी सी बात थी पर मुँह से निकल गयी
नेक राह थी जो अब मेरे पैरों से फिसल गयी

उनके महफ़िल में सरकशी तो मंजूर नहीं थी
पर अदब से पिने का सलिखा रूह भूल गयी

वो इँसा के हक़ मे लढ़ रहा है खुदा के दर पे..
के मैक़दे में बैठे वाइज़ की आस्था दहल गयी

जंग का क्या है हार तो सिर्फ इंसानियत की है
मंझर तबाही का देख सारी बुनियादे हिल गयी

वो मेरी तलाश सरगर्मी से कर गए गैर कूचे में
पकडे जाये तो गम नही वो यादें थी धूल गयी
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©✍️”अशांत”शेखर✍️
29/05/2022

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