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21 Jul 2022 · 1 min read

तिलिस्म तेरा मुझ पर चला धीरे-धीरे

दोस्तो,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों की नज़र !!!

ग़ज़ल
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तिलिस्म तेरा मुझ पर चला धीरे-धीरे,
पत्थर सा दिल मेरा पिघला धीरे-धीरे।
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बिन आब के, आंखियां पत्थरा गयी,
मृग नयनो से तेरे,ऐसे छला धीरे-धीरे।
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शबे-रोज तड़फती रही उल्फ़त मे मेरी,
जुस्तुजू मे मेरी ख्व़ाब पला धीरे-धीरे।
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मसर्रत का आलम मेरा इस तरह रहा,
सोचा मैने अब ये टली बला धीरे-धीरे।
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तसब्बुर मे भी न रहा बेताब तेरे लिए
गेसुओं मे तेरे फंसता चला धीरे -धीरे।
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सेहरा मे लगी बजने शहनाईयां “जैदि”
बेबसी मेरी कि मैं हाथ मला धीरे-धीरे।
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मायने:-
तिलिस्म:-जादू
आब:-पानी
शबे-रोज:-दिन-रात
जुस्तजू:-तलाश
मसर्रत:-खुशी
तसब्बुर:-कल्पना
गेसुओं-जुल्फों
सेहरा:-रेगिस्तान

शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”

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