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20 Jul 2022 · 1 min read

तीरगी से निबाह करते रहे

ग़ज़ल
तीरगी से निबाह करते रहे
अपनी रातें सियाह करते रहे

रोज़ दीवार वो उठाते नयी
और हम रोज़ राह करते रहे

बेवफ़ा से वफ़ा की आस लिए
ज़िंदगी हम तबाह करते रहे।

सींचा उनकी अना का हमने दरख़्त
प्यार जो बे-पनाह करते रहे

ठोकरें बार बार हमको मिली
ख़ुद को क्यों संग-ए-राह करते रहे

दर्द-ए-दिल जब बयां किया है ‘अनीस’
वो फ़क़त वाह वाह करते रहे
– अनीस शाह ‘अनीस ‘

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