अब कैसे कहें तुमसे कहने को हमारे हैं।

गज़ल
221…….1222…….221…….1222
अब कैसे कहें तुमसे कहने को हमारे हैं।
मिलने को तो मिलते हैं नज़रें न मिलाते हैं।
मिलने की तमन्ना है दिल का भी इरादा है,
गर वो भी समझ लें जो दिलदार हमारे हैं।
दुनियां हो तुम्हीं मेरी तुम बिन न जियेंगे हम,
अब जीना हुआ मुश्किल गर्दिश में सितारे हैं।
जो दर्द तुम्हारा था वो आज भी मेरा है,
तुम भी तो मेरा समझो हम भी तो तुम्हारे हैं।
तन पर हैं नहीं कपड़े छत भी है कहां उनको,
बस पेट के खातिर ही फुटपाथ पे रहते हैं।
ये गलती हमारी है हमने ही चुना उनको,
जनता की कमाई जो होटल में उड़ाते हैं।
उनके ही इशारे पर मरते हैं अभी प्रेमी,
जो पास रहे सबके पर दूर हमारे हैं।
……..✍️ प्रेमी