*मुझ पर गरीबी छा गई (गीतिका)*
मुझ पर गरीबी छा गई (गीतिका)
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(1)
ईमानदारी लोभ का , स्पर्श पा मुरझा गई
छल कपट की बात करना ,खून में फिर आ गई
(2)
जो नहीं होना था मुझसे ,भूख वह करवा गई
बदनसीबी थी गरीबी ,मुझको आकर खा गई
(3)
देवता भी सत्य पर ,रहते अडिग कब तक भला
लार टपकी और फिर , काली कमाई भा गई
(4)
साजिशों को रच रहे थे, देवता चुपचाप कुछ
एक चिड़िया फड़फड़ाती ,आई शोर मचा गई
(5)
जिंदगी का इस तरह से ,खत्म किस्सा हो गया
देह की औकात आकर ,मौत फिर बतला गई
(6)
अजनबी – सी राह पर ,जाने कहाँ से आ गई
जिंदगी की दौड़ हमको ,इस तरह भटका गई
(7)
मेरे जैसा कौन हेठा , भाग्य का होगा कहीं
घर में तो सोना भरा ,मुझ पर गरीबी छा गई
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451