Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Jul 2022 · 3 min read

*ससुराल का स्वर्ण-युग (हास्य-व्यंग्य)*

ससुराल का स्वर्ण-युग (हास्य-व्यंग्य)
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
जीवन में ससुराल का विशेष महत्व होता है। ससुराल में सास और ससुर का विशेष महत्व होता है । जब तक सास-ससुर होते हैं, ससुराल का स्वर्ण-युग कहलाता है । व्यक्ति को दामाद की संज्ञा मिलती है । उसके बाद रजत-युग आता है । इसमें दामाद का स्थान बहनोई का हो जाता है तथा सास-ससुर का स्थान साला और साली ले लेते हैं । तीसरा दौर ताम्र-युग कहलाता है । इसमें न दामाद और न व्यक्ति जीजा रहता है । वह फूफा कहलाने लगता है तथा अपने साले-सालियों के बेटे-बेटियों के द्वारा किसी प्रकार से ससुराल-सुख का लाभ प्राप्त करता है ।
स्वर्ण युग श्रेष्ठता से भरा होता है । इधर दामाद विवाह के लिए घोड़े पर बैठकर चला ,उधर सास आरती का थाल लेकर दरवाजे पर उपस्थित हो गई । ससुर ने हाथ का सहारा देकर दामाद जी को घोड़े से उतारा। दामाद जी लाल कालीन पर चलते हुए जयमाल स्थल पर पहुंचे और उनके स्वागत में सेहरे पढ़े जाने लगे ।
जब स्वर्ण-युग में दामाद जी ससुराल पधारते हैं , तो घर की साफ-सफाई हफ्तों पहले से होने लगती है। सुबह को खीर बनती है, शाम को हलवा बनता है। छत्तीस प्रकार के व्यंजन दामाद जी की थाली में परोसे जाते हैं। सास खुद अपने हाथ से दामाद जी को मोतीचूर का लड्डू खिलाती हैं। दामाद जी ससुराल को स्वर्ग समान मानकर वहां से हिलना नहीं चाहते हैं। जितने दिन बीतते हैं ,उतने दिन स्वर्ग का आनंद चलता रहता है। बार-बार दामाद जी का मन अपने मायके में उचटने लगता है और वह पत्नी के मायके की ओर पत्नी को साथ लेकर दौड़ जाते हैं । वहां तो स्वर्ग के द्वार हर समय खुले रहते ही हैं । सास-ससुर स्वागत के लिए तत्पर हैं । ससुराल का वास्तविक आनंद साला और साली द्वारा की जाने वाली आवभगत होती है । दोनों किशोरावस्था के होते हैं ,तब ससुराल का स्वर्ण युग माना जाता है । हंसी-मजाक चलते हैं और दामाद जी मंत्रमुग्ध होकर अपना समय ससुराल में साला और सालियों के बीच परम आनंद में डूबे हुए बिताते हैं ।
स्थितियां बदलती हैं । बद से बदतर होती हैं अर्थात दामाद जी फूफा बन जाते हैं । पत्नी के भतीजे-भतीजी उन्हें अपना एक रिश्तेदार मानते हैं । महत्व देते हैं । सम्मान भी करते हैं ,मगर फूफा जी के गले से यह अभिनंदन नहीं उतरता । उन्हें सास-ससुर का जमाना नहीं भूलता । यह तो केवल अब औपचारिकता निभाने वाली बात रह गई है । चले जाओ तो ठीक है ,न जाओ तो ठीक है । चार दिन रह लो तो कोई मना नहीं कर रहा ,चार घंटे में वापस चले जाओ तो कोई रोकने वाला नहीं । सिवाय “फूफा जी नमस्ते” कहने के भतीजे-भतीजी फूफा जी को अन्य किसी प्रकार का कोई भाव नहीं देते ।
दरअसल एक दिक्कत और हो जाती है। परिवार में नए दामाद और नए जीजा जी प्रविष्ट हो चुके होते हैं । नया दामाद हमेशा पुराने फूफा से बाजी मार लेता है । एक तरीके से यह समझ लीजिए कि फूफागण अपनी ही ससुराल में “मार्गदर्शक मंडल” के सदस्य होकर रह जाते हैं ,जिनको कहने को तो परिवार में “मान” माना जाता है मगर वास्तविक सम्मान दामाद और जीजाओं को मिलता है । फूफागण भुनभुनाते रहते हैं । लेकिन क्या किया जा सकता है ? सब समय की बलिहारी है ।
आदमी को संतोषी होना चाहिए । जब जैसा मिल जाए ,ठीक है । जितना अभिनंदन हो जाए , ठीक है । अब रसगुल्ला नहीं मिल रहा है तो चावल में चीनी डालकर ही मिठाई समझकर खा लो । अब यह तो अच्छी बात नहीं हुई कि व्यक्ति की आयु अस्सी साल हो जाए और फिर भी वह ससुराल शब्द को सुनते ही अपने मुख से लोभ की राल टपकाने लगे ! भाई साहब ! अब जमाना बदल गया । आप बूढ़े हो गए । ससुराल बहुत हुई । अपनी स्थिति को ,जैसा है स्वीकार करो ! मगर नहीं ,पुराने जमाने की यादें आदमी के मन में हिलोरें मारती है और उसे गुजरा हुआ जमाना याद आता है । तभी पुरानी फिल्म का एक पुराना गाना कहीं से बज उठता है …गुजरा हुआ जमाना ,आता नहीं दोबारा ।… और वयोवृद्ध भूतपूर्व दामाद मन मसोसकर रह जाते हैं ! अहा ! क्या ससुराल हुआ करती थी !
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
लेखक :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

1684 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

भयावह होता है अकेला होना
भयावह होता है अकेला होना
Shikha Mishra
4541.*पूर्णिका*
4541.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
हमारी नई दुनिया
हमारी नई दुनिया
Bindesh kumar jha
"दोचार-आठ दिन की छुट्टी पर गांव आए थे ll
पूर्वार्थ
एक कविता उनके लिए
एक कविता उनके लिए
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
अमन राष्ट्र
अमन राष्ट्र
राजेश बन्छोर
संविधान में हिंदी की स्थिति, राष्ट्र भाषा के रूप में हिंदी का योगदान, तात्विक विश्लेषण
संविधान में हिंदी की स्थिति, राष्ट्र भाषा के रूप में हिंदी का योगदान, तात्विक विश्लेषण
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
" गाड़ी चल पड़ी उसी रफ्तार से "
DrLakshman Jha Parimal
टूटे तारे
टूटे तारे
इशरत हिदायत ख़ान
सच्चा मित्र है पर्यावरण
सच्चा मित्र है पर्यावरण
Buddha Prakash
दूध, दही, छाछ, मक्खन और घी सब  एक ही वंश के हैं फिर भी सब की
दूध, दही, छाछ, मक्खन और घी सब एक ही वंश के हैं फिर भी सब की
ललकार भारद्वाज
बाबिया खातून पंद्रह नवंबर को पैदा हुई
बाबिया खातून पंद्रह नवंबर को पैदा हुई
Babiya khatoon
सिर्फ़ शिकायत करते हो।
सिर्फ़ शिकायत करते हो।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
सब मेरे जैसा होना चाहें,
सब मेरे जैसा होना चाहें,
Madhu Gupta "अपराजिता"
शंकर आदि अनंत
शंकर आदि अनंत
Dr Archana Gupta
10/20 कम हैं क्या
10/20 कम हैं क्या
©️ दामिनी नारायण सिंह
पहली दफ़ा कुछ अशुद्धियाॅं रह सकती है।
पहली दफ़ा कुछ अशुद्धियाॅं रह सकती है।
Ajit Kumar "Karn"
सांझ
सांझ
Lalni Bhardwaj
जब तक मुमकिन था अपनी बातों को जुबानी कहते रहे,
जब तक मुमकिन था अपनी बातों को जुबानी कहते रहे,
jyoti jwala
*कौन है इसका जिम्मेदार?(जेल से)*
*कौन है इसका जिम्मेदार?(जेल से)*
Dushyant Kumar
उम्र
उम्र
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
It All Starts With A SMILE
It All Starts With A SMILE
Natasha Stephen
कोशिशें भी कमाल करती हैं
कोशिशें भी कमाल करती हैं
Sunil Maheshwari
हिंदी कब से झेल रही है
हिंदी कब से झेल रही है
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
विवेक
विवेक
Vishnu Prasad 'panchotiya'
प्यार  से  जो  है  आशना  ही  नहीं
प्यार से जो है आशना ही नहीं
Dr fauzia Naseem shad
आप ही बदल गए
आप ही बदल गए
Pratibha Pandey
..
..
*प्रणय प्रभात*
*पयसी प्रवक्ता*
*पयसी प्रवक्ता*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"दो कदम दूर"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...