कुछ तो शर्म करो !!
तुम्हें तो बस दूसरों की राह में ,
कांटे बिछाना आता है ।
कभी खुद तो कोई अच्छा काम ,
किया नहीं तुमने जीवन में।
अपने कार्यकाल में देश हित में ,
कोई खास काम तो किया नही ,
मगर दूसरों के कार्यों में कमियां ,
निकालना खूब आता है ।
अरे ! कभी अपना गिरेबान भी ,
देख लिया होता तुमने ।
गैरों पर उंगली उठाना तुम्हें ,
खूब आता है ।
तुमने जो बिगड़ा उसे बनाने में ,
उसे कितना परिश्रम करना पड़ रहा है उसे।
विदेशों में जो छवि खराब की ,
कितनी मेहनत करनी पड़ रही है ,
उसे साफ करने में।
तुम तो निर्लज्ज हो ,स्वार्थी हो ,और
लालची भी ।
अपने सुख के लिए जोड़े साधन ,
और धन दौलत भी ।
मगर उसे छुआ किसी लालच और ,
स्वार्थ ने नहीं।
क्योंकि वोह देश का सच्चा सपूत है ,
तुम नहीं ।