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27 Jun 2022 · 1 min read

✍️✍️एहसास✍️✍️

✍️✍️एहसास✍️✍️
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मैं कभी कभी
सोचता हूँ सील दूँ ओठों को
के जुबाँ से फिर कोई गहरी बात ना निकले
पर इन आँखों का
क्या करूँ ये भी तो बोलते है…!

मैं कभी कभी
सोचता हूँ मूंद के ही रख लू आँखों को
के फिर कोई हादसों का मंझर पलकों में ना समाये
पर इस दिल का क्या करूँ
जरासी आहट पे ये भी जोर से धड़कते है…!

मैं कभी कभी
सोचता हूँ क़ैद करके रख लू दिल को
की ये कोई बड़े अरमानो की ख्वाईश ना करे
पर इस रूह का क्या करूँ
इसके एहसास भी तो जागते है…!

मैं कभी कभी
सोचता हूँ दफ़ना दूँ सारे एहसासो को
वक़्त बड़ा मुश्किल है किसी के काम आ जाये
और फिर दोस्त यही तो जिंदा रखते है,
इस खुदगर्ज दुनिया से लड़ने का साहस भरते है…!
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✍️”अशांत”शेखर✍️
27/06/2022

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