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26 Jun 2022 · 1 min read

हो गई स्याह वह सुबह

हो गई स्याह वह सुबह,
जो देख रहा था कल आशा से,
हो गया गुम वह सूरज क्षितिज में,
जो बिखेर रहा था लालिमा अपनी,
देख रहा हूँ अब आकाश को,
बिल्कुल शून्य की तरहां अब मैं।

अंतर सिर्फ इतना सा है कि,
परवाज अब पक्षियों की नहीं है,
नजर नहीं आ रही है वह चिड़िया भी,
जो थी बहुत चंचल और सुंदर,
करना चाहता था जिसका शिकार,
कोई शिकारी अपने तीर कभी।

हो गई मन्द्विम वह लौ भी,
जिससे थी रोशनी कमरे में,
और बन गई वह भी हवा अब,
जो नजर आती थी मोती सी,
ओस की तरह जमीं पर सुबह,
जो होती थी शीतल हवा लिये।

बन गया अब वह धूम सा,
जिसको मानता था भविष्य,
एक सुनहरा सपना जीवन का,
खामोश है अब वो लब ,
चेहरा है अब झुका हुआ,
और खड़ा हूँ एक बूत सा,
क्योंकि हो गई स्याह वह सुबह।

शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 264 Views
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