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15 Jun 2022 · 1 min read

कवित्त छंद

कवित्त छंद

धूप सा कड़क बन छाँव की सड़क बन
उर की धड़क बन,पिता हमें पालता।

डाँट फटकार कर कभी पुचकार कर,
सब कुछ वार कर,वही तो सँभालता।

जीवन आधार बन प्रगति का द्वार बन
ईश का दुलार बन,साँचे में है ढालता।

मेरा आसमान पिता,मेरा अभिमान पिता
जग वरदान पिता,संकटों को टालता।

मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
मुरादाबाद, 💐💐💐🙏🏼🙏🏼🙏🏼

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