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11 Jun 2022 · 1 min read

✍️वो कहना ही भूल गया✍️

✍️वो कहना ही भूल गया✍️
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मैं धीरे धीरे पिघल गया ।
शमा की तरह जल गया ।।

शहद की जुबां थी उसकी ।
मैं ख़ुद ब खुद संभल गया ।।

निम के पेड़ का ये शहर ।
मैं कड़वे घूँट निग़ल गया ।।

कुछ तो तज़ुर्बे है धूपछांव के।
वो मौसम की तरह बदल गया ।।

बातों से बात बन भी जाती ।
मगर वो कहना ही भूल गया ।।
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✍️”अशांत”शेखर✍️
11/06/2022

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