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9 Jun 2022 · 2 min read

सामाजिक विषमता बनाम आर्थिक विषमता।

सामाजिक चिंतन-सामाजिक विषमता बनाम आर्थिक विषमता।समस्तीपुर के घटना बड़ हृदय विदारक हैय।अइमे पांच जना फांसी लगा के अप्पन जीवन समाप्त क लैइ हैय। परिवार के मुखिया अप्पन पत्नी,दू गो बच्चा आ माय संगे फांसी लगा लैय हैय। कारण करजा बतायल जाइ हैय।जे वो गरीबी के कारण न चूका सकल हैय।बतायल जाइ हैय की हुनकर बाबू जीयो करजा न चुका पाय के कारण फंसरी लगा लेलै रहलन।इहो बतायल जा रहल हैय कि वो ब्राह्मण परिवार रहलन।सोचे कि बात इ हैय कि कुछ लोग ब्राह्मण परिवार के लेके आरक्षण आ जाति जनगणना के विरोध क रहल हैय।जौकि आरक्षण आ जाति जनगणना सामाजिक समस्या के अंत करे के लेल हैय। एकरा आर्थिक समस्या से कोनो लेना देना न हैय। हालांकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के आरक्षण देल गेल हैय। जौं कि संविधान में सामाजिक आ शैक्षणिक पिछड़ा के आरक्षण देबे के प्रावधान हैय। वास्तव मे भारतीय समाज जाति आधारित हैय।न कि आर्थिक। भारतीय समाज जातिय विषमता से भरल हैय। आर्थिक विषमता के मूल मे सामाजिक विषमता हैय। भारत मे एशिया के सभ से धनिको हैय।त एक तरफ भूख सेहो आदमी मरैत हैय।धन राष्ट्र के सम्पत्ति न हैय वरन् व्यक्तिगत सम्पत्ति हैय।त आर्थिक समानता केना होयत। दोसर बात भारत राजनीतिक रूप से धार्मिक देश न होइतो सामाजिक रूप से धार्मिक देश हैय।आ धर्म मे जाति के व्यवस्था के आधार पर धन के व्यवस्था हैय।तहि लेल जाति आ धन के गडमगड हैय। जौं तक जाति व्यवस्था समाप्त न होयत आर्थिक व्यवस्था लागू न होयत।जातिय व्यवस्था तक आरक्षण आ जाति जनगणना प्रासंगिक होयत।अइला समस्तीपुर के घटना आरक्षण आ जातिय जनगणना के लेल अप्रासंगिक हैय। हमरा सभ के लाश के राजनीति करे से बचे के चाही।
-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सीतामढ़ी।

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