Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
8 Jun 2022 · 1 min read

कविता ही तो है वो

इस भाग दौड़ में इतने मशगूल हो गए हैं हम
कि पता भी नहीं चलता
कब कब कहां कहां कैसे कैसे
हमारी शिद्दतें समझौतों में घुलती रहती है
फिर भीड़ भाड़ के बीच में ही भीड़ भाड़ से दूर कविता ही तो है
वह पिछले दरवाजे के बाहर का आकाश
जहां जब तब जहां-तहां जैसे तैसे
मेरी आंखें खुलती रहती है

कुछ ख्वाब होते हैं, हरदम अधूरे रहने वाले
कुछ झूठ होते हैं, ईमानदार वाले
चरित्र की चमक पर
घिसे जा रहे हैं सच के पीछे से
दांत निपोरते हंसते-खेलते से वो ख्वाब
जो ना कभी पूरे हो सकते हैं
न पीछे छूट सकते हैं
वह झूठ
जिन्हें कभी कहा नहीं जा सकता
वह सच
जिन्हें दबाया नहीं जा सकता
इन सबके बीच
कविता ही तो है
वह गुलाल खाने को तरसता होली मिलन का मैदान
जहां पक्की कच्ची कुछ ख्वाबी कुछ सच्ची मुच्ची
भावनाएं गले मिलती रहती है

भीड़ में अलबेली ,तनहाई में अकेली
कविता ही तो है
मेरे अंदर का वह बचपन
जिसमें मेरी सच्चाई कतरा कतरा करके निकलती रहती है

Loading...