Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
7 Jun 2022 · 1 min read

प्राकृतिक आजादी और कानून

मैंने एक ख़्वाब देखा था,
मैं आजाद था,
मैं आबाद था,
मेरे पास घर था,
घरबार था…

मेरे ऊपर था आसमान,
असीम आसमान,
मेरे नीचे थी जमीन,
पैर रखने की नही कमी…

मैंने बोया एक बीज,
और लाख लेकर आ गया,
कुछ रखा मैंने,
कुछ मालिक को देकर आ गया..

सब हो रहे थे आबाद,
सब हो रहे थे खुश
खिलखिला रहे थे रास्ते
नही था किसी को दुःख…

उगा सूरज तो कानून आ गया,
हाथों में लिए किताब,
सही गलत का हिसाब
आ गया।

तमाम पूछे सबाल,
तमाम जबाब दिए,
हर जबाब पर
नए कानून बिठा दिए।

ये किया गलत,
ये होना था इसप्रकार
पूरा गांव रो रहा था,
तोड़कर कानून का हिसाब..

किसने बनाया कानून,
किसी को पता नही,
जोड़कर पंचायत,
रख दिए कानूनी रोड़ें हर कहीं

कुतर दिया इंसान को,
कानून के नाम से,
हंसता रहा खुद,
इंसानीयत के नाम पर….

जिसके हाथ में कानून
वही हुआ खुदा,
चूस कर हर सख्स को
कर दिया तबाह….

Loading...