Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
2 Feb 2024 · 1 min read

1)“काग़ज़ के कोरे पन्ने चूमती कलम”

काग़ज़ के कोरे पन्नों पर चूमा जब कलम ने,
अपना सा अहसास हुआ जनाब क़सम से।
दिल की बात छू गई ज़हन से,
लिखती गयी कलम फिर गहन में।

अंगुलियाँ बनी कलम, लगी ऐसी लगन में,
रुक न पाईं फिर,चलती रहीं मगन में।
लाड़ ने, स्नेह ने, दस्तक दी ऐसी,
कोरे काग़ज़ की हो गई जैसे,प्यासी।

भर दिए अल्फ़ाज़,खुल गये बंद द्वार,
प्रश्नो के थे ये जवाब।
कोरा काग़ज़, जुड़ गया कलम से,
समय ने करवट ली,फिर अमन से।

समय ने सिखाया, सब्र है आया,
काग़ज़ को जब एक किताब बनाया।
ईर्षा,द्वेष,नफ़रत को हटाया
तो…
प्यार भी पाया।
कलम ने लिखना सिखाया,
दिमाग़ को तरोताज़ा बनाया,
समय को फिर आगे ओर आगे बढ़ाया।

कलम ने सिखाया तो कोरे पन्ने को भर पाई,
शांत मन के साथ…
काग़ज़ को चूमती कलम से ही छू पाई,
उँगलियाँ उत्साहित हुईं फिर कभी न रुक पाईं।।
स्वरचित/मौलिक
सपना अरोरा।

Loading...