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4 Jun 2022 · 1 min read

खबर नहीं कुछ भी

इससे बढ़कर समझ नहीं कुछ भी।
आप में आपका नहीं कुछ भी।
कौन कब अलविदा कह जाए,
ज़िन्दगी का यकीं नहीं कुछ भी ।
ढूंढती हूं मैं आजकल खुद को,
खुद को खुद का पता नहीं कुछ भी,
कितने टूटे हैं कितने बाकी हैं।
बेख़बर हैं खबर नहीं कुछ भी ।

डाॅ फौज़िया नसीम शाद

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