मानव अधिकार किसका ?
क्या ज़माना आ गया ,
घोर कलयुग आ गया ,
मानव अधिकार को ,
ताकत के तराजू पर तौला गया ।
जो है पीड़ित ,दुखी आहत ,
वोह तो मानव समझे जाते नहीं ।
और घोर अपराधी ,बलात्कारी ,
आतंकवादी को ही मानव समझा गया ।
तभी तो मानव अधिकार की ,
परिभाषा को ही बदल दिया गया ।
करके बड़े बड़े नृशंस हत्याकांड ,
और जघन्य अपराध भी छूट जाएं वोह ।
या उम्र कैद का झूठा छलावा देकर,
जेल में ऐश करवाई जाती है ।
और पीड़ितों ,शोषितों ,बेकसूरों की ,
जिंदगी कांटों की सेज बन जाती है ।
यह इंसाफ के ठेकेदार और इनके मालिक,
इन जैसे दानवों के लिए करें मानव अधिकार की बात
इस मानव समाज के लिए ,
देश के कानून और न्याय व्यवस्था के लिए ,
है बड़ी शर्म की बात ।
सोचो जरा ! जो मानव ही नहीं ,
उनका मानव अधिकार कैसा ?
मगर यह तो ताकत का जमाना है भाई !
जिसके हाथ होगी लाठी ,
उसी का तो होगा भैंसा।
आज का मानव अधिकार है ऐसा ।