Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
18 May 2022 · 1 min read

ऐसा क्यों?

ऐसा क्यों है
***********
एक टीस मन को
सदा कचोटती है,
बेचैन करती चुभती है शूल सी।
नहीं पता ऐसा क्यों है?
न कोई रिश्ता, न कोई संबंध
मान लीजिए बस तो है
जैसे हो कोई अनुबंध
लगता जैसे पूर्व जन्म का
हमारे बीच कोई तो है संबंध।
क्योंकि ऐसी बेचैनी, ऐसी चिंता
यूं तो ही नहीं हो सकती,
न चाहते हुए भी आखिर
उसकी पीड़ा क्यों रुलाती?
न चैन से रहने देती
न वो चाहे, न मैं ही चाहूं
उसका तो कुछ पता नहीं
पर मेरा मन उद्वेलित रहता
उसकी पीड़ा से अंतर्मन हिल जाता
जैसे मैं ही जिम्मेदार हूँ
या जो कुछ घटा उसके साथ
उसका दोषी मात्र मैं ही हूँ।
बड़ी विचित्र स्थिति है
जिससे मैं जूझ रहा हूँ,
इतने अंतर्द्वंद्व में उलझकर
अब तो मैं ही अपराधी हूँ
यही मानने लगा हूँ।
शायद इसके सिवा कोई चारा नहीं
क्योंकि इतने आँसुओं में डूबकर
जीने का मतलब क्या है?
जब प्रकृति ही अपराधी होने का
लगातार अहसास करा रही है,
फिर मुँह मोड़ने का लाभ क्या है?
मगर ये बात समझ से परे है
उसकी खुशियों की इतनी चिंता
मेरी चिता क्यों बन रही है?
कोई तो बताये मुझे बस इतना
इसमें मेरा कसूर क्या है?
और यदि कसूर मेरा नहीं है तो
आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों है?

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित

Loading...