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14 May 2022 · 4 min read

🌷🍀प्रेम की राह पर-49🍀🌷

किसी भी गुण का गुरूतर होना श्रेष्ठ हैं।परन्तु अति तो उसकी भी बुरी है।निरन्तर प्रवाहवान सरिता मध्यम वेग से कल-कल करते हुए बहती है तो बहुत रमणीय शोभायमान दृश्य प्रस्तुत करती है और यदि वही जब प्रलयकारी जल प्लावन का विकराल रूप धरकर दहाड़ती है तो शोक को देने वाली होती है।भले ही वह किसी स्थिति पर ही लाभ दे परन्तु हानि की पर्याप्त संभावना है।कोई विशेष आधार को लेकर कोई किया गया श्रेष्ठ कार्य अपनी श्रेष्ठता तब ही प्रदर्शित और प्रमाणित करेगा कि वह परिणाम भी श्रेष्ठ ही दे।अन्यथा परिणाम दुःखद होने पर वह निश्चित ही उस साधक को अनायास क्लेश से मिला देगा।सर्वदा निरंकुशता का व्यवहार किसी भी क्षेत्र में उचित नहीं है।निरंकुशता यदि कहीं दृष्टव्य है तो अहंकार का आधार अवश्य होगा।समुचित प्रयासों की सार्थकता सफलता मिलने पर ही सार्थक है।अलग स्थिति में अनुभव के तीतर उड़ाते रहो।लौकिक वस्तुओं में ईश्वर दर्शन की स्थिति इतनी आसान नहीं है।कहना बहुत सरल है।परन्तु शनै: शनै: इसका प्रभाव एक लम्बे समय बाद दिखाई देगा।अपने अन्दर की शान्ति बाहर की शान्ति को जन्म देती है और ऐसी शान्ति स्थिर होती है।कोई पाप ही उदय हो तब जाकर यह नष्ट हो।परमार्थ की आधारशिला निश्चित ही विशुद्ध प्रेम को जन्म देती है।वह प्रेम बहुत ही आनन्ददायक होता है।आनन्द के हिलोरे उठते रहतें हैं।निरोध का विषय तो भोग,आसक्ति और असंयम में ही प्रभावी होता है।संयम रूपी तलवार सभी विषयों को काट सकती है।यह निश्चित है कि उक्त मानव देह में अपनी उपस्थिति का आंदोलन जारी रखेंगे।परंतु कब तक?यदि आप श्रेष्ठ मार्ग के पथिक हैं तो विजय आपकी होगी।आप संयम को बुद्धिमत्ता पूर्वक उपयोग करें।यह नितान्त आवश्यक है कि इस विषय में प्रकृति को प्रेरक बना ले।यह अतिश्लाघनीय रहेगा।मसलन यदि मार्तण्ड अपने रश्मियों पर संयम न रखे तो यह जगत भस्म हो जाये।शशि के रजत वर्णीय रश्मियाँ भेषजीय गुण से इस जगत को रिक्त कर दे।पृथ्वीतत्व की समाप्ति पर मूलाधार कैसे जाग्रत होगा।भले ही सूर्य,वायु,शशि आदि सभी भय से अपने भावों में बह रहे हैं।परं उनमें यह भय भी है कि जगत को भस्म करने,सुखाने,औषधिरहित करने का हमारा न्याय हमारे लिए भी तो भय ही देगा।फिर सृष्टि का सहज प्रवाह कितना प्रभावित हो जाएगा।चिन्तन करने का विषय है।यह सब आलोकित होने वाला ईश्वर की एक अंश शक्ति से आलोकित है।तो उसमें व्यवधान सामान्य जन अपने अनुसार परिवर्तन किस प्रकार करेंगे।यह इतना आसान नहीं है।व्यक्तिगत परिप्रेक्ष्य में किसी भी साधन को हम अपना परम हितैषी बनाकर उससे किसी भी स्तर पर सदुपयोग तथा दुरुपयोग भी कर सकते हैं।तो हे मित्र मैंने तुम्हें ऐसे किसी भी साधन का रूप नही दिया और न ही कभी सदुपयोग और दुरुपयोग की भावना की दृष्टि से उस निमज्जित ही किया।किसी शिखर पर आरोहण तदा सद्य तथा त्वरित होगा जब उस शिखर की विपरीत प्रवणता के प्रति हम अपनी सामर्थ्य की अनुकूलता लेकर प्रदर्शित करेंगे।निरन्तर किसी वस्तु की चाहना उससे सम्बंधित गुण और अवगुण को हमारे अन्दर विकसित कर देती है।यदि अपना कौशल किसी स्वयं से शक्तिहीन मनुष्य के साथ प्रेषित किया जाए तो यह निश्चित है कि हम स्वयं उस व्यक्ति के साथ न्याय के अप्रतीक उस वर्तमान में बने हुए थे।तर्क तो उस स्थिति में होगा और सात्विक होगा कि उसमें भी समतुल्य शक्ति का संचार कर उसे उस कौशल में प्रवीण बनाया जा सके।तो हे मित्र मैंने तुम्हें कौशल में स्वयं से प्रवीण ही आँका था और यदि तुम्हें मैंने किसी भी कौशल में प्रवीण आँका तो उस विषय में तुमसे प्रवीणता भी ले लेता।सीखता उसे।कोई चाहना नहीं है हृदय में अब।क्योंकि ईश्वरीय माया का भंजन बड़ा दुष्कर है।इसमें घिरता हुआ मानव केशव के केशों के कुञ्चनता की तरह कभी इसे समझ न सकेगा।उपदेशक तो सभी बनते हैं माया के प्रति।परन्तु अगुआई करने का सामर्थ्य और उसके भंजन की कला की प्रतिभूति कोई न लेता है इस जागतिक व्यापार में।।”दैवीहेषा गुणमयी मम माया दुरत्यया” कहकर माधव ने उसके उपाय भी बता दिया।”मामैव हि प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते” तो हे तुम वंचक मायावी तो हो और उस ज्ञान के प्रतीक भी जिससे तुम सदैव अपनी मूर्खता ही सिद्ध कर सकोगी।सम्प्रति तुम किसी व्यापारी को ढूँढ़ रही हो क्या।जो तुम्हें सोने और चाँदी से तौलेगा।तो मैंने पहले भी कहा था कि यह सब तुम अपनी संकुचित बुद्धि से क्षणिक सुख की चाहना के लिए अपने विवेक की अल्प गहराई से सोच रही हो।सांसारिक सुख का व्यवहार एयर कंडीशनर जैसा विषैला है।वह स्वेद को सोखकर आपको रुग्ण बना रहा है।तो हे मित्र मेरे रामकृष्ण तो सदाशय हैं वह सांसारिक रोगों को पार कराने वाले हैं।पर हे मूर्ख यदि तुम्हें एयर कंडीशनर से तुलना के आधार पर देखें तो तुम एयर कंडीशनर से ज़्यादा घातक हो।समय समय पर अपने तेवर बड़े ही निम्न श्रेणी के प्रदर्शित करते रहते हो।जिनका आशय मैं बहुत दुख के साथ समझता हूँ।तुम मूर्ख हो।तुम वंचक हो।तुम्हारे प्रति प्रेम का प्रदर्शन उस लज्जा को देने वाला है जो सदैव एक विष का ही व्यवहार करेगा।वह मृत्यु को उपस्थित करेगा पर मरण न होने देगा।यह सब तुम्हारे मूर्खता का परिचय ही देंगे।तुम ऐसे ही ब्लॉक करती रहना।क्योंकि तुम सामर्थ्यशाली नहीं हो।तुम मूर्ख हो।वज्रमूर्ख।मैं तो तर जाऊँगा केशव के गुणों का गुणगान कर।

नोट-तुम यह न समझना कि लिखना बन्द कर दिया है।तुम्हें मुर्ख सिद्ध करता रहूँगा और ऐसे ही लिखता रहूँगा।भले ही थोड़े बिलम्ब से लिखूँ।

©अभिषेक: पाराशरः

Language: Hindi
779 Views
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