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9 May 2022 · 1 min read

छद्म राष्ट्रवाद की पहचान

बाहर धूप बहुत है, छतरी बिकती, क्यों नहीं,
घर में है सिलेंडर, एक हजार रुपये पास नहीं,

मंगता है मगर, मांगता है पैसे, रोटी खाता नहीं,
भूख नहीं है तलब शराब की,रोटी वहां चलती नहीं,

मंदिर मस्जिद बहुत है, घटते पाप क्यों नहीं,
गिनते है पैसे, चढ़ा दूध दूषित है शुद्ध नहीं,

मरने पर उतारू हो,मन में दया धर्म अहिंसा नहीं,
रोग है लंबा, हकीम करे क्या, दवा के पैसे नहीं,

आधार बेबुनियाद है देशहित के, बराबर क्यों नहीं,
दूसरे धर्मों का दोष भला, इसमें बिलकुल नहीं,

जनमत है बेईमान, संविधान के दोष कतई नहीं,
दोष सारा इसमें,शिक्षा चिकित्सा रोजगार मूलभूत नहीं,

चाहिए था सबकुछ बिन किये, इसमें दोषी तंत्र नहीं,
झण्डे से लेकर, संस्थान देश के अपने नहीं.

अचंभा इसमें क्या हंस, जनता को चूल्हे की फिक्र नहीं,
कथा कहानी प्रवचन चाहिए बेहोशी को, उसमें कमी नहीं.

हंस महेन्द्र सिंह

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