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1 May 2022 · 1 min read

क्यो बार-बार आजमाते हो

मुझे क्यों बार-बार आजमाते हों
क्या अब तक मुझे जान पाएं हों
कितने वक़्त तो गुजर गए हैं साथ तेरे
फिर क्यों ऐसा-वैसा इल्जाम मुझपे लगातें हो।।

मैंने तो एक ख्वाब देखा था साथ तेरे
जो ओ भी हकीकत से ,लगता हैं दूर हों गया हों
वक़्त तो पानी जैसा हैं,जो कभी ठहरता नहीं
फिर हालात से कैसे तुम इल्तिज़ा रखतें हों।।

नीतू साह
हुसेना बंगरा, सीवान-बिहार

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