√√ *अब भी हल्ला-बोल है 【गीतिका】*
अब भी हल्ला-बोल है 【गीतिका】
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
(1)
लोकतंत्र पर भीड़-तंत्र का अब भी हल्ला-बोल है
तंत्र रास्ता-जाम कर रहा ,जन का डिब्बा गोल है
(2)
बड़े-बड़े लोगों की तिकड़मबाजी को कुछ समझो
इनकी हर नौटंकी में भीतर ही भीतर पोल है
(3)
ऊपर से जो जनता के रक्षक खुद को बतलाते
इनका नरम मुलायम मुखड़ा ,असली कब है खोल है
(4)
वोटों से चुनकर तुमने जो है सरकार बनाई
उस से बढ़कर नहीं किसी का होता कोई मोल है
(5)
रखो समय-सीमा कुछ ,कितने दिन में न्याय मिलेगा
बरसों चला मुकदमा ,न्याय नहीं है ,टालमटोल है
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रचयिता :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451