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15 Apr 2022 · 1 min read

सकल को चिंता, होवे कल की l

सकल को चिंता, होवे कल की l
सकल छबि जंगल की, दंगल की ll

गर कल, अस्तित्व ना मन में l
तब चिंता, सहजो सरल की ll

एक अंत, सदा दिखे, देख l
आस पास नदियाँ, गरल की ll

चिंता रहे, चिंता ढोना l
सकल अंजान, प्यास बल की ll

अरविन्द व्यास “प्यास”
व्योमत्न

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