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1 May 2022 · 1 min read

एक जंग, गम के संग....

उदास-सा रहता हूँ
पानी-सा बहता हूँ
गम की इस महफिल में,
हँसना तो आता नहीं
रोना भी भूल जाता हूँ,
बनना चाहता हूँ तूफान
पर हवा बनकर ही रह जाता हूँ |

गम को सहते सहते
मैं सहम-सा गया हूँ,
पर पता नहीं क्यों मुझे
अब दर्द सहने की आदत सी हो गई |

जीवन दुखों से भरा पड़ा
पता नहीं किस दुख में हूँ मैं खड़ा,
कभी अपनत्व निभाने के फेरे में
धोखा खा जाता हूँ,
कभी रिश्ते निभाने के फेरे में
खुद को भी भूल जाता हूँ |

अगर ये लम्हा, तन्हा से भरा है
तो क्या हुआ ?
एक दौर आएगा
मुझे खुश कर जाएगा
फिर यह समंदर-सा गम
मेरे दिल के अंदर से बह जाएगा |

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