Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
10 Apr 2022 · 1 min read

गाँव री सौरभ

गाँव री सौरभ

गाँव री सौरभ रग-रग में समाई,
जठै ई देखूँ, देवे पग – पग दिखाई।

पीपल-बरगद-नीम री घणेरी छाया,
जठै प्यारो बचपन बितायो,
बाल सखा सागै खूब पींगां चढाई।
जठै ई देखूँ, देवे पग – पग दिखाई।

पनघट माथे सखिया री टोली,
बोले बतळावे करे हंसी ठिठोली,
पानी री गगरी कमर लटकावे, माथे चढाई
जठे ई देखूँ, देवे पग – पग दिखाई।

कोयल री कूँकती मीठी बोली,
रंग-बिरंगी इन्द्रधनुषी होली,
फूलों रे चमन सी महक आई।
जठे ई देखूँ, देवे पग – पग दिखाई।

ताल-तलैया मायं कमल खिलतां,
आथूणे सूरज री लालिमा पाणी दीठे ,
निरमल गांव री भोर सुहावणी।
जठे ई देखूँ, देवे पग – पग दिखाई।

बळदां रे गळा बाजती घंटियाँ,
खेता में नाचती फूटरी परियाँ,
रूप-यौवन री अणूती मस्ती छाई।
जठे ई देखूँ, देवे पग-पग दिखाई।

मनमोवणा चितराम, लेहरावे धान,
मनमौजी घणा हैं गाँव रा किसान,
स्हैर री लागे वठै फ़ीकी मिठाई।
जठे ई देखूँ, देवे पग-पग दिखाई।

गाँव री सौरभ रग -रग में समाई,
जठे ई देखूँ, देवे पग-पग दिखाई।

हरीश सुवासिया
आर.ई.एस.
देवली कलां (पाली)

Loading...