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9 Apr 2022 · 1 min read

आजादी की आशा

आजादी की आशा दिल में थी
लेकिन भय की निराशा होठों पर थी
दब गई वह आशा इस निराशा से
कुछ दिल जाग उठे ,अपनी शवासा से
जब एक नजर उन्होंने उठाई
तो थम गई वह आवाज
समझ गई दुनिया उस आवाज की कमजोरी का राज
जाग उठे ,सोच पड़े वह शेर हमारे
पाने मुक्ति इस बंधन से अपनी ताकत के सहारे
दूर नहीं वह दिन जब हम ने यह कहकर ललकारा था
15 अगस्त 1947 को सबके मन में जीत का जयकारा था

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