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8 Apr 2022 · 1 min read

बूँद-बूँद बरसी मन,पीड़ा /

बूँद-बूँद
बरसी मन,पीड़ा ।

आँख पड़ी
किरकिरी दृष्टि की,
कान थके
पर निंदा सुन-सुन ।
पोर-पोर
विक्षत अँगुलियाँ,
आरामी
खटिया को बुन-बुन ।

खून चूसता
सुख का कीड़ा ।

पाँव गड़ीं
राहें पथरीली
भूल-भुलैयों के
जमघट पर ।
रुँधा गला
नाहक चिल्लाते
नेता, अफसर
की चौखट पर ।

सूखा मुँह के
रस का बीड़ा ।

बूँद-बूँद
बरसी मन,पीड़ा ।
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— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी(रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।

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