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31 Mar 2022 · 1 min read

मां की आंचल की कोर

ना खींचों ऐसे रिश्तों की डोर
कि टूटकर हम, नदी के हों जाएं दो छोड़।
हो सके तो थाम लो मेरी ऐसी बांहे
जैसे बचपन में पकड़तें थे हम सभी,
मां की आंचल की कोर।।

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