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25 Mar 2022 · 1 min read

बचपन कितना सुंदर था

बचपन कितना सुंदर था

मायके आई संघमित्रा, अपने दोनों भाइयों के परिवार के मन-मुटाव को लेकर चिंतन कर रही थी।
बचपन में उसके दोनों भाई, कभी उससे तो कभी आपस में झगड़ा कर लेते थे।
कुछ समय के लिए बोलना बंद कर देते थे। उसके बाद सब कुछ भुला कर फिर बोलने लगते।
अब वे बड़े हो गए। बड़े होने के बाद भी झगड़े, बोलना भी बंद हुआ। अब दोनों भाइयों को आपस में बोले पांच साल हो गए।
दोनों भाइयों के बीच घर में, दिलों में, जीवन में सदा के लिए दीवार खिंच गई।
संघमित्रा बहुत देर तक अपने भाइयों में बचपन के बाद आए, बड़प्पन को खोजती रही। परन्तु नहीं मिला।
वह बुदबुदा उठी, “बचपन कितना सुंदर था।”

-विनोद सिल्ला

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