Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
18 Mar 2022 · 1 min read

प्रेरक संस्मरण

वर्ष 1995 की बात है | विद्यालय का वार्षिकोत्सव करीब था | एक हिंदी नाटक का मंचन भी किया जाना तय हुआ | नाटक में मुख्य चरित्र की भूमिका में एक लड़की का चयन किया जाना था | मैंने अंत में एक लड़की ” देन्या साहू ” का नाम सुझाया | और जब उस बच्ची से उसकी राय पूछी गयी तो वह रोने लगी और डर गयी | क्योंकि उसने कभी ऐसी भूमिका या स्टेज पर कोई प्रस्तुति नहीं दी थी | वह किसी भी कीमत पर यह रोल निभाने को राजी नहीं थी | तब मैंने उसे अलग से शांत भाव से समझाया कि यदि वह इस रोल को निभा लेती है तो पूरी जनता उसके काम की तारीफ़ में उठा खड़ी होगी और तालियों की गड़गड़ाहट से तुम्हारा स्वागत होगा | मैंने उसे समझाया कि वह एक बार कोशिश कर देखे यदि सब ठीक रहा तो ठीक नहीं तो यह रोल किसी और लड़की से करा लेंगे | देन्या तैयार हो गयी |
वार्षिकोत्सव के दिन आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि जिस लड़की ने नाटक में भाग लेने से मन किया था उसकी प्रस्तुति पर सारे दर्शक उठ खड़े हुए और जोर – जोर से तालियाँ बज उठीं | इस बच्ची को मंच पर सम्मानित किया गया | बाद में जब वह लड़की मुझसे मिली तो उसका एक ही उत्तर था कि सर आपको मुझ पर विश्वास था इसलिए यह सब संभव हुआ | आपका कोटि – कोटि धन्यवाद |

Loading...