"सखी री देखो, आई होली"
मोहि मन भावै स्नेह की बोली,
सखि री देखो आयी होली,
गोरी का रंग रेशमी चोली,
लाल कपोल मिठी बोली,
कोयल गान अति प्रिय लागै,
गली-गली हुड़दंग मचावत टोली,
सखि री देखो आयी होली।1
मन मोहक रंग खिलै चहुंंओर,
बरसे गुलाल तन होय विभोर,
गोपियां आवैं पिया बखानें,
मोहि निक न लागै ठिठोली,
सखि री देखो आयी होली।2
अंतस जलैं मन होय अधीरा,
अंग-अंग तरसे यौवन की क्रीड़ा,
फागुन रंग नहि बिन पिया सुहाए,
पीछे पड़ैं गांव के हमजोली,
सखि री देखो आयी होली।3
वृषभानु किशोरी यहां विराजै,
कृष्ण की मुरली मथुरा में बाजै,
गोपियान लागै जस प्रीति अभागे,
बिन मोहन, गोकुल की गलियां खाली,
सखि री देखो आयी होली,
मोहि मन भावै स्नेह की बोली।।4
✍वर्षा (एक काव्य संग्रह)/राकेश चौरसिया