Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Mar 2022 · 4 min read

भरत कुल3

भाग 3

सेठ जी के छोटे बेटे का नाम किशोर है। किशोर को असलहे का बहुत शौक है। वह कभी-कभी नए हैंड मेड असलहे लेकर घर में आ धमकता।कभी देर रात तक सुरक्षा के बहाने असलहा अपने पास रख कर बाहर जाता विवाह समारोहों मेंअसलहे का प्रदर्शन आम बात है । असलहे स्टेटस सिंबल बन गए हैं।

किशोर अब युवा हो चुका है। उसकी उम्र इक्कीस वर्ष पार कर रही है। उसके विवाह के लिए रिश्ते आ रहे हैं। सेठ जी दान दहेज बहू सब देख विवाह ठीक करने के पक्ष में हैं। तो, सुशीला दहेज के विरुद्ध है। उसका कहना है, कि भगवान का दिया हुआ सब कुछ है हमें दहेज की क्या आवश्यकता ?बस अच्छी संस्कारी बहू मिले जो घर परिवार को संभाल सके। अपने बिगड़े पति पर अंकुश रख सके।

एक दिन शुभ मुहूर्त देखकर सेठ जी ने एक संस्कारी लड़की से किशोर का विवाह तय कर दिया ।सुशीला अड़ गयी कि उसे दहेज में एक रूपये भी नहीं चाहिए। सुशीला के सामने सेठ जी की एक न चली और बिना दहेज शादी की रस्में से संम्पन्न हुई। किशोर का विवाह प्रज्ञा से संपन्न हुआ ।किशोर बहुत खुश है। किन्तु, घर में रहते रहते वह ऊबने लगा। उसे अपने मित्रों की याद आने लगी। उसके मित्र घर पर आने लगे। स्वागत -सत्कार होने लगा ।मित्र किसी ना किसी बहाने किशोर को अपने साथ ले जाते और शराब पीकर नशे में चूर वह देर रात तक घर लौटता। प्रज्ञा से रोज उसका झगड़ा होता। रात के अंधेरे में कभी-कभी किशोर प्रज्ञा पर हाथ उठा देता। झगड़ा जब बहुत बढ़ जाता तो सेठ जी बहू को समझा-बुझाकर शांत कराते ,और मन ही मन अपनी नियति को कोसते।किंतु,अपने मुंह से एक शब्द भी अपने पुत्र के विरुद्ध ना बोलते। सास सुशीला पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता । उसे ह्रदय रोग हो गया। शीला की उचित देखभाल ना हो सकी। एक दिन सीने में जोर का दर्द उठा।

यह उस समय की बात है, जब देश आपातकाल से मुक्त हो चुका है ।चारों तरफ हर्ष एवं चुनाव की लहर चल रही है। बाजार में कालाबाजारी, जमाखोरी चरम पर है ।सामान्य जनता महंगाई की मार से परेशान है। चिकित्सालय की औषधियाँ बहुत महंगी हो गई हैं। जिससे चिकित्सालय में सुविधाओं का अभाव हो गया है ।सरकारी चिकित्सक निजी प्रैक्टिस पर ध्यान देने लगे हैं। उस समय सेठ जी जीप में सुशीला को बैठाकर निजी चिकित्सक के पास ले गए। सेठ जी ने पत्नी अभाव को प्रथम बार महसूस किया। बहूयें अपनी सास को बहुत मानती हैं। वह बहुत नेक दिल महिला हैं। बहुओं का रो-रोकर बुरा हाल था ।जीवनसाथी से विछोह का ख्याल आते ही सेठ जी का दिल बैठा जा रहा था ।उन्हें एक-एक करके सभी स्मृतियाँ याद आने लगी ,जब सुशीला को वे ब्याह कर घर लाए थे। उनकी कोई बात सुशीला को बुरी ना लगती ना सुशीला को पति की कही बात से गुरेज था ।
डॉक्टर साहब ने सुशीला की जिंदगी बचा ली। जिंदगी जीने के लिए धन नहीं सुकून की आवश्यकता होती है। सुशीला का सुकून उसके बच्चों ने छीन रखा था।वह चुपचाप सभी जुल्म सहती रही ।जब सहनशक्ति जवाब दे गई तो एक नासूर के रूप में उसका घाव फट गया।वह गंभीर हृदयाघात शिकार हो गई । जीवन परिवर्तनशील है।बाबा और दादी अब बहूओं और पोते पोतियो की सेवा के सहारे थे। परिवार को धन का लालच था और बाबा को ठीक से देखभाल का। बुढ़ापा भी संभालना था और व्यापार भी संभालना था ।लड़कों से उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी। कौशल किशोर की दिनचर्या पूर्वक चलती रही। सुशीला अब ठीक हो गई । किंतु वह अत्यंत कमजोर हो गयी है।

पति-पत्नी एक दूसरे के सहयोगी होते हैं । यह रिश्ता विश्वास से बनता है। पति अपने माता-पिता से जो बात छुपा सकता है, वह अपनी पत्नी से नहीं छुपा सकता। पत्नी भी अपने पति से जो बात छुपा सकती है, वह अपने माता-पिता से नहीं छुपा सकती। कहते हैं, ताली एक हाथ से नहीं बजती। सुशीला अब बीमार रहने लगी। शोभा दो वर्ष के अंतराल के बाद पुनः गर्भवती हुई है ।कौशल उसकी देखभाल में लगा रहता। सुशीला भी बेटी की तरह शोभा का ख्याल रखती । नौ माह पूर्ण होने पर शोभा ने एक सुंदर सी कन्या को जन्म दिया। जिसका नाम हर्षा रखा गया। कन्या विकास के पथ पर अग्रसर हुयी, और घर में किलकारियां गूँजने लगी।
सुशीला को अपने दोनों बेटों का व्यवहार अंदर ही अंदर खा रहा है ।दोनों बेटों का चाल चलन ठीक नहीं है । अपार संपत्ति की चकाचौंध से दोनों अपने भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। पैसों की ताकत के आगे मदांध हो रहे हैं। उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है।

Language: Hindi
1 Like · 267 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all

You may also like these posts

*बेचारे लेखक का सम्मान (हास्य व्यंग्य)*
*बेचारे लेखक का सम्मान (हास्य व्यंग्य)*
Ravi Prakash
दीपावली पर केन्द्रित कुछ बुंदेली हाइकु कविता
दीपावली पर केन्द्रित कुछ बुंदेली हाइकु कविता
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
संवेदनशीलता मानव की पहचान
संवेदनशीलता मानव की पहचान
Vindhya Prakash Mishra
अपने कॉलेज के वार्षिक समारोह के दिन छेत्र के बी डी सी  सुरेश
अपने कॉलेज के वार्षिक समारोह के दिन छेत्र के बी डी सी सुरेश
Rituraj shivem verma
न जाने कौन रह गया भीगने से शहर में,
न जाने कौन रह गया भीगने से शहर में,
शेखर सिंह
आपसी की दूरियों से गम के पल आ जाएंगे।
आपसी की दूरियों से गम के पल आ जाएंगे।
सत्य कुमार प्रेमी
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
क्षणभंगुर गुलाब से लगाव
क्षणभंगुर गुलाब से लगाव
AMRESH KUMAR VERMA
Yesterday ? Night
Yesterday ? Night
Otteri Selvakumar
बालबीर भारत का
बालबीर भारत का
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
फ़ितरत
फ़ितरत
Manisha Manjari
कृषक समाज
कृषक समाज
Rambali Mishra
तेरे होने का जिसमें किस्सा है
तेरे होने का जिसमें किस्सा है
shri rahi Kabeer
दीवानी
दीवानी
Shutisha Rajput
अपनी कलम से.....!
अपनी कलम से.....!
Kunwar kunwar sarvendra vikram singh
सरस्वती माता का वंदन
सरस्वती माता का वंदन
Manoj Shrivastava
“*आओ जाने विपरीत शब्द के सत्य को*”
“*आओ जाने विपरीत शब्द के सत्य को*”
Dr. Vaishali Verma
गीत- निभाएँ साथ इतना बस...
गीत- निभाएँ साथ इतना बस...
आर.एस. 'प्रीतम'
शरीर को जिसने प्राण दिए बस उसी की जय कीजिए
शरीर को जिसने प्राण दिए बस उसी की जय कीजिए
Hafiz Shanuddin
"हिंदी भाषा है, समाज का गौरव दर्पण"
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
बात बढ़ाना ठीक नहीं
बात बढ़ाना ठीक नहीं
SATPAL CHAUHAN
प्रीत
प्रीत
Mahesh Tiwari 'Ayan'
डर
डर
अखिलेश 'अखिल'
एक झलक मिलती
एक झलक मिलती
Mahender Singh
गणपति बप्पा
गणपति बप्पा
विजय कुमार नामदेव
" मौत "
Dr. Kishan tandon kranti
*साम्ब षट्पदी---*
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
असली
असली
*प्रणय प्रभात*
माँ नहीं है देह नश्वर
माँ नहीं है देह नश्वर
indu parashar
National Symbols of India
National Symbols of India
VINOD CHAUHAN
Loading...