Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
16 Mar 2022 · 1 min read

गाँव का मेला

गाँव का मेला कोई फिर से दिखाना रे
लौट के आता नहीं फिर वो जमाना रे

बाबा और बाबू का मेला घूमाना रे
लकड़ी के खिलौने को जिद कर जाना रे
दोस्तों को खिलाना और दोस्तों का खाना रे
लौट के आता नहीं फिर वो जमाना रे

बाबा – दादी, अम्मा – बाबू से रूपया कमाना रे
रूपया कई -कई बार गिनना सबको दिखाना रे
गट्टा, लाई, पेठा, कचालू घर पर लाना रे
गट्टा -लाई -पेठा सुबह उठ कर खाना रे
लौट के आता नहीं फिर वो जमाना रे

बुढ़िया कचालू वाली कभी-कभी दिखती है
बिक्री हो गयी कम है चंद सिक्के गिनती है
उसके कचालू का पैसा अब भी है चुकाना रे
लौट के आता नहीं फिर वो जमाना रे

बाबा खिलौने वाले लढ़िया न बनाते हैं
कब बनेगी लढ़िया सुन हल्का मुस्कुराते हैं
बाबा का दिलाया लढ़िया बल भर चलाना रे
लौट के आता नहीं फिर वो जमाना रे

नए बच्चे आजकल के इन सबसे
अनजान है
चार दिन को गाँव आते ,घर पे बने
मेहमान हैं
आदमी को दिखता केवल पैसा कमाना रे
लौट के आता नहीं फिर वो जमाना रे

गाँव के मेले में गुम है बचपन सुहाना रे
मैं खो गया हूँ मुझे कोई ढूंढ के लाना रे
गाँव के मेले खातिर कोई ढूंढो बहाना रे
लौट के आता नहीं फिर वो जमाना रे
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

Loading...