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16 Sep 2021 · 1 min read

आइ रौंद कतह छाह कतह(कविता)

आइ रौंद कतह छाह कतह
जल उझलैत बरखा रानी
श्यामल मेघ नीक
बुलबुल तान नीक
धान रोपि रहल हँसिक सगरे जन
मीठगर भाषा अभिनव जयदेवक गीत सुनाबै
ऐहीसँ नीक तस्वीर कतह

उड़ि उड़ि सगरे बउऐलौ
माटिक सोनल गमक कतहुँ नहि पेलौं
मन करै घर नैय जाउ
छोटछीन कूटी अतैह बनाउ
चहुदिस चबूनिया खुसी देखलौ आजे
नाचैय गिरहथ अजबै ताले
बीतल दिन जँका
जानै इयाद बिसरब केना
मन करैय छोड़ि बैसी जैतो अतैय
आइ रौंद कतह छाह कतह
जल उझलैत बरखा रानी

श्रीहर्ष आचार्य

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