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28 Sep 2021 · 1 min read

जखन जखन देखलौँ इजोरिया,मन हमर बहुसेयै (कविता)

जखन जखन देखलौँ इजोरिया,मन हमर
बहुसेयै
लोर बहेयै आखिसँ,मगिया सजे करैज तरसेयै
जिनगी संभाली कोना,फुनगी हमरासँ लप्पकेयै
घनि बँसवरिया मिलू कोना,लोगनिक मन ठनकेयै
जखन जखन देखलौँ इजोरिया,मन हमर बिहुसेयै

प्यार किया पाप होइयै,गुनी गुनी दिने देहिया भखरेयै
बाबू माय केँ चक्करसँ तेजि माहुर खाय,काल्हि उ कहुकेयै
चिरई चुगलपन करेयै छिप्पे पर,नाग देखि हमरा डरेयै
प्यार पागलपन किया होइयै,जहानसँ भटकेयै
जखन जखन देखलौँ इजोरिया,मन हमर बिहुसेयै

आँखि मे लोर,मन मे पीरा, पोसल खुन लहरेयै
जिनिगीसँ जूझत छी,मौत नाहि किया आबेयै
झंखत छी फाटल करैज,रैल जँका धक्क धक्क धड़केयै
गलती केलौं अपनेसँ,फासि जँका सजा भेटेयै
जखन जखन देखलौँ इजोरिया,मन हमर बिहुसेयै

मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य

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