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23 Nov 2021 · 1 min read

इ सब संसार दे

मोनसँ हे गौरी सजना के पियार दे
कलकत्तासे लौटल पानि फुआर दे
गंगा मैयाँसँ दुलार कने लऽके उधार
अचरा लहरा कऽ इ सब संसार दे

निरमोही कए गप्प बितउ हिअ पर
मरल करेज बिसरि चलु हे खुटा पर
नवका बुझि हिनके मोर आ छिपकि
पेटि के ललकी नुआ पहिर कए हाँकि
चलू चलू हे ननकी दुलहिन सखी चलू
अचरा लहरा कऽ इ सब संसार दे

माय बाप कयै दिन रखता चिरैय के
उठाबै परत एक दिन ऐहि जिनगी के
किये पायल जैसे छमकी देखाबहि के
दूरि कए आरो गोरकी बडाउ नै गुड़िया
चलू चलू हे ननकी दुलहिन सखी चलू
अचरा लहरा कऽ इ सब संसार दे

मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य

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