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30 Nov 2021 · 1 min read

जीवन चक्र

कखनो जीवन बसंत बनि बरसतै…
कखनो इ पतझड़ बनि झहरतै…
कखनो पूर्णिमा रैतक चान जकां…
सब संताप हैर लेतै…
कखनो अमावस के स्याह रैत बैन डरौतै…
इ क्रम त अहिना चलिते रहतै…
अनवरत…. ✍️

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