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5 Jul 2021 · 1 min read

हमनी के बचपन

हमनी के बचपन के सुनऽ कहानी,
जवना के नइखे अब कवनो निशानी।

मिले ना पिज़्ज़ा, ना बर्गर भा डोसा,
डोसा के छोड़ऽ मिले ना समोसा।

हाथे प आवे ना कहियो अट्ठन्नी,
दस बीस पइसा भा मिले चउअन्नी।

दसे गो लेमचुस में बीस लोग खाव,
मामा के दाँते से सगरी फोराव।

लेमचुस आ भूजा के रहे जमाना,
लन्चे में बाबू हो मिले ना खाना।

नरकट के कलम आ खड़िया के घोल,
माचिस के तास रहे साथ अनमोल।

सलाखे के पटरी राखल जा डोरा,
चेपी आ गोली से भरि जाव झोरा।

सूती के बोरा, शीशो के पटरी,
जवना प सेल भा पोतिंजाँ कजरी।

गेल्हीं जाँ पटरी खूबे रगरि के,
मुँह होखे करिया बाबू झगरि के।

नहरी में होखे तब खूबे नहान,
उ मस्ती के लौटी ना कबो जहान।

– आकाश महेशपुरी
दिनांक- २२/०१/२०२०

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