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22 Oct 2021 · 1 min read

सुख के आशा

सुख के आशा
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कहिया ले मन के छली ई अंधेरा।
कहियो त होई सुख के सबेरा।

नया फूल खीली जीवन डगर में
महँका दी हमका ऊ सगरो नगर में,
समइया ऊ आई जब होई बड़ाई
फिर ना करी केहूँ हमरो हीनाई,

मनवाँ में कइल तू आशा बसेरा।
कहियो त होई सुख के सबेरा।

सुख दुख जिनगी के रहिया चलेला
पीठी दर पीठी सब ईहै कहेला,
सुख में उफनाई ना दुख से घबराईं
बिधना के लीखल दिल से अपनाई,

सुख – दुख के जीवन भर लागेला फेरा।
कहियो त होई सुख के सबेरा।

नया लोग मिलीहे,बिछड़ीहे पुराना
बीतल समइया बन जाई तराना,
नया गीत जिनगी में फिर से लिखाई
छूटल जे रहिया में बहुत याद आई,

एक दिन बनी सभे काल के चबेना।
कहियो त होई सुख के सबेरा।

पतझड़ के मौसम आई,आके जाई
फिर से बसंती फूल लहलहाई,
भरी तेज केतनों हवा आपन झोंका
फिर भी तू मन में रखिह भरोसा

दिन जिन्दगी के ना एक सा रहेला।
कहियो त होई सुख के सबेरा।
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✍✍ पं.संजीव शुक्ल”सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार

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