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15 Dec 2021 · 1 min read

गजल

दरदें दिल आपन सबके, बतावल न करीं।
दुःख में हमदर्द सबके, बनावल न करीं।

बनिके नादान दे दिहें, उ धोखा बहुत,
सबसे दिलवा जी रउरे, लगावल न करीं।

मेहनत से कमाई जी, नून रोटी,
घर रुपिया हराम के, लावल न करीं।

सब केहु इहाँ जिये के, हकदार बा,
धूप औरन के रउरे, चुरावल न करीं।

जब जलवही के बा, द्वेष ईर्ष्या जले,
बहू बेटी हउवे केहुक़े, जलवाल न करीं।

कर्म हउवे प्रधान, ई मानी हजूर,
अनायाश गाल आपन, बजावल न करीं।

एक्को रुपया साथे न केहू, ले गइल बा,
एहि से नाज रउरे तनिको, देखावल न करीं।

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