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12 Mar 2022 · 1 min read

*दलबदलू चालाक 【कुंडलिया】*

दलबदलू चालाक 【कुंडलिया】
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छोड़ा इस दल को चले ,लालच में उस ओर
मगर दाँव उल्टा पड़ा , मिली पराजय घोर
मिली पराजय घोर , डुबोई दोनों लुटिया
हुई जमानत जब्त ,ढही नव-दल की कुटिया
कहते रवि कविराय , गधा बनता यों घोड़ा
दलबदलू चालाक , सोचता क्यों दल छोड़ा
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451

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