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11 Mar 2022 · 1 min read

विरह वियोगन

दर्द दिया दिलवर अगर ,
दवा बताए आप ।
तेरे ही बस नाम का ,
लेती हूँ आलाप ।

विरह वियोगन मैं बनी ,
आँख झरे दिन रात ।
दर्शन मुझको दो अभी ,
मिले शब्द का भाप ।

हिय अंतर प्रिय तुम बसे ,
औरे सब जंजाल ।
नयन रोकती अश्रु अब ,
आओ तुम चुपचाप ।

मधुर भाव तन-मन छले ,
बरबस बहती प्रीति ।
विरह अगन मैं हूँ जली ,
बाँहों अब लो ढाँप ।

चाह रही मन में बहुत ,
पाऊँ बस एकांत ।
सुख समीर की धार में ,
होए प्रेमालाप ।।

डा . सुनीता सिंह “सुधा”शोहरत
स्वरचित सृजन
वाराणसी
23/7/2020

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