Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
9 Mar 2022 · 1 min read

अपनी बेटी

इन हरी भरी वादियों में ही न जाने क्यों दिल को सुकून और मन को शांति मिलती है। धरती पर कहीं स्वर्ग है तो पहाड़ियों की मखमली गोद में ही मिलता है। दिल करता है कि इनके रेशमी से ख्यालों में ही कहीं उलझ कर रह जायें। पहाड़ी की चोटी पर चढ़ जायें और जोर से आवाज दें बीते पलों की यादों को और इन बंद दरवाजों और खिड़कियों से कहें कि इन्हें खोल कर ही कोई अपने बिछड़ों सा या उनकी शक्ल से मिलता जुलता कोई बाहर निकलकर मेरा हाथ थामकर मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरकर कहे कि, ‘बेटी! घर के भीतर आ जाओ। तुमसे मैं पहली बार मिल रहा हूं पर तुम मुझे अपनी बेटी सी लगी। इस घर को अपना ही घर समझो। भीतर अाओ। बाहर तुम्हें ठंड लग जायेगी।’
‘अरे ओ हिमालय पुत्री की मां! अपनी बेटी आज पहली बार अपने घर आई है। एक प्याली गरमा गरम इसके लिए चाय पहाड़ी व्यंजनों के नाश्ते के साथ तो जरा ले आओ।’

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

Loading...