भूगोल
नहीं समझ आता मुझे, धरती का भूगोल
वक्री वक्री चाल है, चेहरा क्यों सुडोल
है सारे संसार की, रचना ही संताप
खेले सारी उम्रभर, हुआ न कोई गोल।।
सूर्यकांत द्विवेदी
नहीं समझ आता मुझे, धरती का भूगोल
वक्री वक्री चाल है, चेहरा क्यों सुडोल
है सारे संसार की, रचना ही संताप
खेले सारी उम्रभर, हुआ न कोई गोल।।
सूर्यकांत द्विवेदी