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5 Mar 2022 · 1 min read

सामञ्जस्य

दायित्वों की जमीन पर
जाने कितनी चाहतें,
अनसुलझे स्वप्न
और अहसास
दफन करने पड़ते हैं ।
इन्हीं की नींव पर
हमारा व्यक्तित्व
स्थिर होता है।
हमारी आत्मा को
ओढ़ना पड़ता है
मर्यादा और
संतुलन का लिबास ।
क्योंकि
जीवन तो बस
संतुलन में पलता है ।
असंतुलन मात्र
विनाश गढ़ता है ।

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