Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
27 Feb 2022 · 2 min read

फौजी की जिंदगी

घर की जिम्मेदारी का बोझ लिए
आज मैं घर से बहुत दूर हूं
मिल नहीं सकता अपनों से
बन गया एक ख्वाब हैं
हाय, कैसी है ये मजबूरी..!

नहीं है यहा आंगन घर का
नहीं कोई मकान है
दूर तलक धरती ऐसे दिखे
मानो सफेद बर्फ की
चादर ओढी हैं ..!

जुदा हुआ जब पत्नी से
मैने भरकर आलिंगन में
गले से लगाया था
भावुक हुई उसकी आंखो से
आंसू छलक पड़े थे..!

जुदा होने का दर्द यूं बयां हुआ
उसके लब्जों से
कहा लौट के जल्दी आना ए-फौजी
मेरे दिन तो तेरी यादों में यूं बीत जाते है
जैसे उधार की सांसे
चलती हो सीने में..!

अब तो गूंज उठी हैं किलकारियां आंगन में
तेरे प्यारे बच्चे पापा पापा
कहने को तरस जाते है
देश की रक्षा करने वाले ए-फौजी
कुछ प्यार इन पर भी बरसा दे..!

शब्द नहीं है मेरे पास बयां करने को
घर की जिम्मेदारियों के बोझ से
मैं परदेसी बन गया हूं
ना भाईदूज हैं ना राखी का त्योहार है
वॉट्सएप पर आते बहिनों के
बस यही पैग़ाम हैं..!

सल्यूट है मेरे चांद से भाई तुझको
तु कितना महान हैं
गर्व मुझको ही नहीं
आज तुझ पर
सारे हिंदुस्तान को हैं..!

निकला था जब मै घर से
लगाया था मुझे मां ने सीने से
उसकी बाहों जैसा आनंद
दुनिया में कहीं मुझे मिला नहीं हैं
आज भी जब वो बाहों का घेरा याद आता है
गिर पड़ते है आंसू मेरे
दिल उमड़ उमड़ के रोता हैं..!

कैसे भूल जाऊं मैं
कितना त्याग किया बापू ने
मेरी खुशी की खातिर
मुझको धरती सा धीरज दिया
और उड़ना सिखाया आसमान में…!

कहा था एक दिन पापा ने मुझ से
नहीं पता था बेटा मुझ को
अगर कोई दिखायेगा आंख हिंदुस्तान को
तो तेरी आवाज़ के दम से ही
उस की सांसे थम जाएगी …!

जय हिन्द
जय भारत

– कृष्ण सिंह

मेरे बारे में….
मेरा नाम “कृष्ण सिंह” है । मैं सरकारी जॉब में हूँ । हरियाणा के रेवाड़ी जिले के छोटे से गांव में रहता हूँ । कविता अपने लिये लिखता हूं, लेकिन औरों से बाटने में आनन्द की अनुभूति होती है । प्रथम कविता 02 फरवरी 2022 में अमर उजाला अखबार के “मेरे अल्फ़ाज़” ब्लॉग में “कुछ कहने का दिल है आज बहुत दिनों के बाद” शीर्षक से प्रकाशित हुई है। तभी से लिखने की एक नई दिशा मिली हैं । आपके अमुल्य प्रतिकिया के सदैव इन्तजार में… कृष्ण सिंह’…. आप मुझसे बात यहाँ कर सकते …. आप चाहे तो अपना नाम और e-mail id भी दे सकते है ।

Loading...